वर्ण व्यवस्था मानेंगे तो महिलाओं के शील पर कटाक्ष होना संभव नहीं ।
व्यक्ति स्त्री को देख सर्वप्रथम उसके धर्म/पंथ (हिंदू, जैन, सिख, बौद्ध) को जानने की चेष्ठा करेगा, उसके बाद वर्ण-जाति को लेकर विचार करेगा, समान न होने पर कामना उसी क्षण नष्ट हो जाएगी क्योंकि ऐसा अंतरवर्ण का प्रावधान ही नहीं है। फिर उसके गोत्र के बोध होने की प्रतीक्षा करेगा जिससे भूलवश भाई-बहन का रिश्ता न निकल जाए। इतना सब मंथन करने में कामावेश अग्नि द्वग्ध होकर शांत हो जाएगी। अब बताइए किस दृष्टि से वर्णाश्रम घातक है?
यह जो सकल जगत में उन्माद है वह वर्णाश्रम न पालन करने के कारण है।
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